Supreme Court Property Rights:देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जो लाखों परिवारों के लिए उम्मीद की किरण बना है। यह फैसला साफ करता है कि अगर बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं, तो उन्हें उनकी संपत्ति पर अधिकार नहीं मिलेगा, भले ही वह संपत्ति उनके नाम क्यों न कर दी गई हो।
बच्चों की जिम्मेदारी तय
अक्सर यह देखने को मिलता है कि माता-पिता अपनी मेहनत की कमाई से जीवनभर जोड़ी गई संपत्ति बच्चों के नाम कर देते हैं, यह सोचकर कि बुढ़ापे में वे उनका सहारा बनेंगे। लेकिन कई मामलों में बच्चे संपत्ति मिलते ही अपने माता-पिता को नजरअंदाज करने लगते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संपत्ति का अधिकार तभी मिलेगा जब संतान अपने कर्तव्यों का पालन करेगी।
गिफ्ट डीड भी हो सकती है रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अगर माता-पिता ने बच्चों को गिफ्ट डीड के जरिए संपत्ति दी है और बच्चे उनका ध्यान नहीं रख रहे, तो यह गिफ्ट डीड भी कानूनी रूप से रद्द की जा सकती है। यानी अब सिर्फ नाम पर संपत्ति लेना काफी नहीं, सेवा और देखभाल भी जरूरी है।
बुजुर्गों को मिला कानूनी सहारा
यह फैसला ‘वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007’ को मजबूती देता है। इस अधिनियम के तहत माता-पिता बच्चों को दी गई संपत्ति वापस ले सकते हैं यदि वे उनकी देखभाल नहीं कर रहे हों। इससे बुजुर्गों को अपने अधिकारों के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
नाम पर दी गई प्रॉपर्टी भी वापस ली जा सकती है
अगर कोई माता-पिता अपने बेटे या बेटी को अपनी संपत्ति उनके नाम कर चुके हैं, और अब वे उनके साथ बुरा व्यवहार कर रहे हैं या उन्हें अकेला छोड़ चुके हैं, तो कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वह संपत्ति वापस ली जा सकती है। यह फैसला उन लाखों माता-पिता के लिए राहत की खबर है जो अपनी संतान की उपेक्षा झेल रहे हैं।
सिर्फ बेटा नहीं, सभी संतानों पर लागू होगा नियम
यह नियम केवल बेटों पर नहीं, सभी संतानों – बेटा, बेटी, दामाद या बहू – पर समान रूप से लागू होगा। कोर्ट ने कहा कि माता-पिता की सेवा करना हर संतान की जिम्मेदारी है, इसमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
अब जिम्मेदारी के साथ ही मिलेगा हक
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि “संपत्ति के साथ जिम्मेदारी भी आती है।” यदि कोई संतान केवल संपत्ति लेने के लिए माता-पिता के करीब आती है और बाद में उन्हें नजरअंदाज करती है, तो वह उस संपत्ति की हकदार नहीं मानी जाएगी।
परिवारों में फैलेगा जागरूकता का संदेश
यह ऐतिहासिक फैसला आने वाले समय में कई परिवारों में जागरूकता फैलाने का काम करेगा। अब माता-पिता को यह कानूनी अधिकार प्राप्त हो गया है कि यदि उनकी औलाद उनका सम्मान और सेवा नहीं करती, तो वे उन्हें दी गई संपत्ति को वापस ले सकते हैं।
यह फैसला सिर्फ एक कानूनी निर्णय नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी भी है – माता-पिता की संपत्ति को अधिकार समझने वालों को अब सेवा और कर्तव्य का अर्थ भी समझना होगा। अब औलाद की मनमानी नहीं चलेगी और माता-पिता को उनका हक व सम्मान मिलेगा।