Daughter Property Rights 2025:भारत में बेटियों के संपत्ति अधिकार को लेकर लंबे समय से चर्चा और संघर्ष चलता आ रहा है। समाज में अब भी कई लोग मानते हैं कि बेटियों का अधिकार सिर्फ ससुराल तक सीमित है, मायके की संपत्ति पर उनका कोई हक नहीं है। लेकिन समय के साथ कानूनों में बदलाव हुए और बेटियों को भी अधिकार मिले। हाल ही में हाईकोर्ट के एक फैसले ने इस मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हर मामला अपनी परिस्थितियों के आधार पर तय किया जाएगा। बेटियों को पिता की संपत्ति में तब ही हिस्सा मिलेगा जब कुछ विशेष कानूनी शर्तें पूरी हों। यदि पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई है या वसीयत में बेटी का नाम शामिल नहीं है, तो उस स्थिति में बेटी का दावा कमजोर हो सकता है।
बेटी का हक हर बार नहीं?
इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि हर बेटी को स्वतः ही संपत्ति में अधिकार नहीं मिलेगा। उन्हें कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा और अपने अधिकार को साबित करना होगा। इसका मतलब यह है कि केवल बेटी होना ही संपत्ति में हिस्सेदारी के लिए पर्याप्त नहीं है।
2005 का कानून क्या कहता है?
भारत में 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में एक बड़ा बदलाव किया गया था, जिसमें बेटियों को भी बेटों के बराबर अधिकार दिए गए। इस संशोधन के अनुसार, बेटी चाहे विवाहित हो या अविवाहित, वह पैतृक संपत्ति में समान रूप से हकदार होगी। लेकिन यह संशोधन 1 सितंबर 2005 के बाद से प्रभावी हुआ। अगर पिता की मृत्यु इससे पहले हो गई हो, तो यह कानून लागू नहीं होता।
समाज में इस फैसले का असर
हाईकोर्ट के इस फैसले ने समाज में दो तरह की सोच को जन्म दिया है:
कुछ लोग मानते हैं कि कानून का पालन जरूरी है, और संपत्ति का अधिकार केवल नियमों के अनुसार ही दिया जाना चाहिए।
वहीं, अन्य लोग इस फैसले को बेटियों के हक के खिलाफ मानते हैं और चाहते हैं कि बेटियों को हर हाल में बराबरी का अधिकार मिले।
इस फैसले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बेटियों को आज भी पूरे हक मिल रहे हैं या समाज में अब भी भेदभाव मौजूद है।
आर्थिक और सामाजिक असर
अगर बेटियों को संपत्ति में पूरा अधिकार दिया जाए, तो यह उनके आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक मजबूत कदम होगा। इससे:
बेटियां आत्मनिर्भर बनेंगी
जीवन के फैसले खुद लेने की ताकत मिलेगी
समाज में महिलाओं की स्थिति मजबूत होगी
लेकिन जब उन्हें उनका हक नहीं मिलता, तो यह न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए असमानता का संकेत है।
पारिवारिक रिश्तों में बदलाव की ज़रूरत
अगर बेटियों को संपत्ति में बराबरी का अधिकार मिले, तो इससे परिवार के भीतर भी सकारात्मक बदलाव होगा। भाई-बहन के रिश्तों में संतुलन आएगा, माता-पिता भी बेटियों को उतना ही महत्व देंगे जितना बेटों को। इससे बेटियां शादी के बाद भी मायके से जुड़ी रहेंगी, और सामाजिक सोच में बदलाव आएगा।
आगे की दिशा
हाईकोर्ट का यह फैसला एक कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन इसने पूरे समाज को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब जरूरत है कि:
कानून में और स्पष्टता लाई जाए
बेटियों को उनके अधिकारों की जानकारी दी जाए
सामाजिक सोच में बदलाव लाया जाए
बेटियों को संपत्ति में हक देने का मुद्दा केवल कानून का नहीं, बल्कि सामाजिक बराबरी का भी है। जब तक बेटियों को बेटे जितना सम्मान और अधिकार नहीं मिलेगा, तब तक असली समानता का सपना अधूरा रहेगा। हाईकोर्ट का हालिया फैसला भले ही कुछ बेटियों के हक पर रोक जैसा लगे, लेकिन यह समाज में बदलाव की एक नई चर्चा जरूर शुरू करता है – और शायद यही चर्चा आगे चलकर एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन लाएगी