दादा, पिता या भाई रोक रहे हैं प्रॉपर्टी का हक? ऐसे पाएं अपना हिस्सा कानूनी तरीके से :Ancestral Property Rights

Ancestral Property Rights:भारत में पहले जहां संयुक्त परिवारों में कई पीढ़ियां साथ रहती थीं, अब धीरे-धीरे एकल परिवारों का चलन बढ़ रहा है। इसका कारण शहरीकरण, नौकरी के अवसरों की तलाश और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भावना है। इसके चलते अब लोग पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से की मांग कर रहे हैं, जिससे विवाद भी तेजी से बढ़ रहे हैं।

संपत्ति विवाद क्यों होते हैं?

अधिकतर विवाद तब शुरू होते हैं जब पारिवारिक संपत्ति का स्वामित्व स्पष्ट नहीं होता या परिवार के कुछ सदस्य दूसरों के हक को मानने से इनकार कर देते हैं। यह स्थिति खासकर महिलाओं के लिए और भी चुनौतीपूर्ण होती है, जिन्हें कई बार परिवार वाले उनकी हिस्सेदारी से वंचित कर देते हैं।

क्या होती है पैतृक संपत्ति?

हिंदू कानून के अनुसार, वह संपत्ति जो चार पीढ़ियों – परदादा, दादा, पिता और पुत्र – से चली आ रही हो, उसे पैतृक संपत्ति कहा जाता है। इस पर जन्म के साथ ही सभी उत्तराधिकारियों का बराबर का हक होता है। कोई भी इसे बिना सभी की सहमति के न तो बेच सकता है और न ही किसी को दे सकता है।

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स्वयं अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति में अंतर

स्वयं अर्जित संपत्ति वह होती है जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत और पैसे से खरीदा हो। इस पर केवल उसी व्यक्ति का अधिकार होता है, वह चाहे तो इसे किसी को दे सकता है या वसीयत बनाकर बांट सकता है। जबकि पैतृक संपत्ति पर सभी उत्तराधिकारियों का समान हक होता है।

महिलाओं के बदलते अधिकार

2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में हुए संशोधन के बाद बेटियों को भी बेटों के बराबर अधिकार मिल गए हैं। पहले बेटियों को केवल भरण-पोषण का हक मिलता था, लेकिन अब उन्हें भी पैतृक संपत्ति में बराबर हिस्सा मिलता है – चाहे उनकी शादी हो गई हो या नहीं।

कैसे लें अपने हक के लिए कानूनी मदद?

यदि दादा, पिता या भाई प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं दे रहे हैं, तो आप इन कदमों को अपनाकर कानूनी रूप से अपना अधिकार प्राप्त कर सकते हैं:

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  1. कानूनी नोटिस भेजें – सबसे पहले अपने हिस्से की मांग करते हुए परिवार को नोटिस भेजें।

  2. सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर करें – अगर नोटिस का जवाब न मिले, तो कोर्ट में केस करें।

  3. सभी सबूत इकट्ठा करें – संपत्ति से जुड़े दस्तावेज जैसे खसरा-खतौनी, वंशावली, रजिस्ट्री पेपर आदि जुटाएं।

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  4. गवाहों की मदद लें – जो लोग पारिवारिक इतिहास जानते हैं, उनकी गवाही भी मददगार हो सकती है।

  5. कोर्ट से स्टे ऑर्डर लें – जब तक मुकदमा चल रहा हो, संपत्ति की बिक्री या ट्रांसफर को रोकने के लिए अदालत से स्टे ऑर्डर लें।

न्याय प्रक्रिया में लग सकता है समय

संपत्ति विवादों में फैसला आने में कई बार वर्षों लग सकते हैं, इसलिए धैर्य रखें। यदि सभी पक्ष आपसी समझ से सुलह करना चाहें, तो कोर्ट की मदद से समझौता कर सकते हैं जो समय और पैसे दोनों की बचत करता है।

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पैतृक संपत्ति पर सभी उत्तराधिकारियों का समान हक होता है, चाहे वह बेटा हो या बेटी। यदि परिवार के अन्य सदस्य अधिकार देने से इनकार करें तो घबराने की जरूरत नहीं है। कानून आपके साथ है। बस सही कानूनी प्रक्रिया अपनाएं, सबूत जुटाएं और अपना हक पाएं।

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